untitled two

this poem ows its origin to doggie . thank you doggie ( a.k.a. Aashish Gupta, my immediate senior at IIT MADRAS) यह कविता बिना doggie के सम्भव नही थी . aashish ने फॉर्मेट दिया की कविता कैसे लिखी जाए और सोचने के लिए प्रेरित भी किया ।


चलो लाल फीते तोडे
बंद दीमागों को खोले
चलो कुछ काम भी करना शुरू करे
खोखले विचारों के निर्वात से जनता को मुक्त कराये
झोले कुरते और चप्पलों मे बधें इंसानों को
चलो अब कुछ नया सस्ता मेड इन चाइना पहनाये
चलो मार्क्स लेनिन स्तालिन और माओ के चेलो को
वास्तविकता के दो जाम पिलाये
चलो आकाश मे जन्नत ढूँढने वालों को
धरती की एक सैर पर ले जाएँ
चलो किसी लाल बुद्धिजीवी को पागलखाने ले जाएँ
चलो समाज को नया भविष्य नयी दिशा दे
नए विचार नए औजार नए बाजार दे
चलो अब आगे बढे दुनिया को जीते
दुनिया के पार संसार को भी
अपनी मुट्ठी मे ले
चलो रे साथी
इस रक्त रंजित प्रदूषित दुनिया को
अब फिर से हरा करे
यही पर जन्नत बनाये
और एक शाश्वत शांति स्थापित करे
फिर एक दिन ही नहीं
हर दिन दिवाली ईद बड़ा दिन मनाये

Comments

  1. communiston
    se khoondas
    ogden nashness ke saath
    badiya hai
    awesome

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  2. Ok. So I am carrying the red flag?

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  3. no.
    not you.
    some other people surely are.

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. Inspired by the Sathyu Sarangi poem? :P

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  6. as always ........only uttara could hv caught us ;)

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  7. Now that I think, The carriers of the Red flag are not as big a nuisance as the carriers of the Saffron flag are.

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