Bhed aur Bhediye

This is a classic Hindi political satire written by Harishankar Parsai. It is no longer present in the hindi course books where I read it for the first time. And I could not find it anywhere on net. So here it is.  


एक बार एक वन के पशुओं को ऐसा लगा कि वो सभ्यता के उस स्तर पर पहुँच गए हैं,जहाँ उन्हें एक अच्छी शाशन - व्यवस्था अपनानी चहिए | और एक मत से यह तय हो गया कि वन-प्रदेश मे प्रजातन्त्र की स्थापना हो | पशु समाज मे इस 'क्रान्तिकारी' परिवर्तन से हर्ष कि लहर दौड गई कि सुख-समृद्धि और सुरक्षा का स्वर्ण-युग अब आया और वह आया |

जिस वन प्रदेश में हमारी कहानी ने चरण धरें हैं, उसमें भेडें बहुत थीं- निहायत नेक,इमान्दार,कोमल,विनयी,दयालु,निर्दोष पशु,जो घास को तक फूंक-फूंककर खाता है |

भेडों ने सोचा कि अब  हमारा भय दूर हो जाएगा | हम अपने प्रतिनीधियों से कानून बनवायेंगे कि कोई जीवधारी किसी को न सताए, न मारे | सब जीयें और जीने दें | शान्ति,स्नेह,बंधुत्व और सहयोग पर समाज आधारित हो |

और, इधर भेड़ियों  ने  सोचा कि हमारा अब संकट काल आया |

भेडों कि संख्या इतनी अधिक है कि पंचायत में उनका ही बहुमत होगा और अगर उन्होनें  कानून बना दिया कि कोई पशु किसी को न मारेगा, तो हम खायेंगे क्या? क्या हमें घास चरना सीखना पड़ेगा ?

ज्यों-ज्यों चुनाव समीप आता, भेडों का उल्लास बढ्ता जाता | एक दिन बूढें सियार ने भेड़िये से कहा, "मालिक! आज कल आप  बड़े उदास रहतें हैं |" 

हर  भेड़िये के आस-पास दो-चार  सियार रहतें ही हैं | जब भेड़िया अपना शिकार खा लेता है, तब ये सियार हड्डियों में लगे मांस को कुतर कर खातें हैं, और हड्डिया चूसतें रहतें हैं | ये भेड़िये के आस-पास दुम हिलातें चलतें हैं, उसकी सेवा करतें हैं, और मौके -बेमौके "हुँआ-हुँआ" चिल्ला कर उसकी जय बोलतें हैं |
तो बूढें सियार ने बड़ी गम्भीरता से पूछा, " महाराज, आपके मुख चन्द्र पर चिन्ता के मेघ क्यों छाए हैं ?" 
वो सियार कुछ कविता भी करना जानता होगा या शायद दूसरे की उक्ति को अपना बनाकर कहता हो |

खैर, भेड़िये ने कहा " तुझे क्या मलूम नही है कि वन-प्रदेश में नई सरकार बनने वाली है? हमारा राज तो अब गया |"
सियार ने दांत निपोर कर कहा, " हम क्या जाने महाराज ! हमारे तो आप ही 'माई-बाप' हैं | हम तो कोई और सरकार नही जानते | आपका दिया खातें है, आपके गुण गातें हैं |"

भेड़िये ने कहा "मगर अब समय ऐसा आ रहा है कि सूखी हड्डिया भी चबाने को नहीं मिलेंगी |"

सियार सब जानता था, मगर जान कर भी न जानने का नाटक करना न आता, तो सियार शेर न हो गया होता ! आख़िर भेड़िये ने वन-प्रदेश कि पंचायत के चुनाव कि बात बूढें सियार को समझायी और बढे गिरे मन से कहा,"चुनाव अब पास आता जा रहा है. अब यहाँ से भागने के सिवा कोई चारा नहीं | पर जाए भी कहाँ ?"

सियार ने कहा " मालिक, सर्कस में भर्ती हो जाइए |"

भेड़िये ने कहा ," अरे वहाँ भी शेर और रीछ को तो ले लेतें हैं , पर हम इतने बदनाम हैं कि हमें वहाँ भी कोई नहीं पूछता |"

"तो" सियार ने खूब सोचकर कहा, "अजायब घर में चले जाइए |"

भेड़िये ने कहा,"अरे वहाँ भी जगह नहीं है | सुना है, वहाँ तो आदमी रखें जाने लगें हैं |"

बूढ़ा सियार अब ध्यानमग्न हो गया | उसने एक आँख बन्द की, नीचे के होंठ को ऊपर के दांत से दबाया और एकटक आकाश की तरफ देखने लगा जैसे विश्वात्मा से कनेक्शन जोड़ रहा हो | फिर बोला, "बस समझ मे आ गया मालिक, अगर पंचायत मे भेड़िया जाति का बहुमत हो जाए तो ?"

भेड़िया चिढ के बोला, कहाँ की आसमानी बातें करता है? अरे हमारी जाति कुल दस  फीसदी है और भेढें तथा अन्य छोटे पशु नब्बे फीसदी, भला वो हमें क्यू चुनेंगे | अरे,कहीं जिन्दगी अपने को मौत के हाथ सौंप सकती है? मगर हाँ,ऐसा हो सकता तो बात ही क्या थी?

बुढा सियार बोला,"आप खिन्न मत होइए सरकार! एक दिन का समय दीजिये | कल तक कोई योजना बन जाएगी | मगर एक बात है | आपको मेरे कहे अनुसार कार्य करना पड़ेगा |"

मुसीबत मे फँसे भेड़िये ने आखिर सियार को अपना गुरु माना और आज्ञापालन की शपथ ली |

दूसरे दिन बूढ़ा सियार अपने साथ तीन सियारों को लेकर आया | 
उनमें से उसने एक को पीले रंग में रँग दिया था, 
दूसरे को नीले में और तीसरे को हरे में |

भेड़िये ने देखा और पूछा,"अरे ये कौन हैं?"

बूढ़ा सियार बोला, "ये भी सियार हैं सरकार, मगर रंगें सियार हैं | 
आपकी सेवा करेंगे | आपका चुनाव प्रचार करेंगे |"
भेड़िये ने शंका की, "मगर इनकी बात मानेगा कौन? ये तो वैसे ही 

छल-कपट के लिए बदनाम हैं |"

सियार ने भेड़िये का हाथ चूमकर कहा, "बड़े भोले हैं आप सरकार! अरे मालिक रुप-रंग बदल देने से तो सुना है आदमी तक बदल जाते हैं | फिर ये तो रंगे सियार हैं |"

और तब बूढ़े सियार ने भेड़िये का भी रुप  बदला | मस्तक पर तिलक लगाया,गले में कंठी पहनाई और मुंह में घास के तिनके खोंस दिए | बोला,"अब आप पूरे सन्त हो गए | अब भेडों की सभा में चलेंगे | मगर तीन बातों का ख्याल रखना- अपनी हिंसक आँखो को ऊपर मत उठाना, हमेशा ज़मीन की और देखना और कुछ बोलना मत, नहीं तो सब पोल खुल जाएगी और वहाँ बहुत-सी भेड़े आएँगी, सुन्दर-सुन्दर, मुलायम-मुलायम, तो कहीं किसी को तोड़ मत खाना |"

भेड़िये ने  पूछा,"लेकिन ये रंगें सियार क्या करेंगे? ये किस काम आएँगे?"
   
बूढ़ा सियार बोला,"ये बड़े काम के हैं | आपका सारा प्रचार तो ये ही करेंगे | 
इन्हीं के बल पर आप चुनाव लड़ेंगे | ये पीला वाला सियार बड़ा विद्वान है, 
विचारक है, कवि भी है, लेखक भी | ये नीला सियार नेता और पत्रकार है | 
और ये हरा धर्मगुरु | बस अब चलिए |"

"ज़रा ठहरो!" भेड़िये ने बूड़े सियार को रोका," कवि, लेखक, नेता, विचारक- ये तो सुना है बड़े अच्छे लोग होते हैं | और ये तीनों........"

बात काटकर सियार बोला ,"ये तीनों सच्चे नहीं हैं, रंगें हुए हैं महाराज! अब चलिए देर मत करिए |"

और वो चले | आगे बूढ़ा सियार था, उसके पीछे रंगें सियारों के बीच भेड़िया चल रहा था- मस्तक पर तिलक, गले में कंठी, मुख में घास के तिनके | धीरे-धीरे चल रहा था | अत्यंत गम्भीरतापूर्वक, सिर झुकाए विनय की मूर्ती!

उधर एक स्थान पर सहस्रों भेड़े एकत्रित हो गयीं थी, उसी सन्त के दर्शन के लिए जिसकी चर्चा बूड़े सियार ने फैला रखी थी | 

चारों सियार भेड़िये की जय बोलते हुए भेडों के झुन्ड के पास आए | बूड़े सियार ने एक बार ज़ोर से सन्त भेड़िये की जय बोली! भेडों में पहले से ही यहाँ-वहाँ बैठे सियारों ने भी जयध्वनि की |

भेडों ने देखा तो वे बोलीं," अरे भागो,वह तो भेड़िया है |"

तुरन्त बूड़े सियार ने उन्हे रोककर कहा,"भाइयो और बहनों! अब भय मत करो | भेड़िया राजा सन्त हो गयें हैं | उन्होनें हिंसा बिल्कुल छोड़ दी है | उनका 'हृदय परिवर्तन' हो गया है | वे आज सात दिनो से घास खा रहें हैं | रात-दिन भगवान के भजन और परोपकार में लगे रहतें हैं | उन्होनें अपना जीवन जीव-मात्र की सेवा में अर्पित कर दिया है | अब वे किसी का दिल नहीं दुखाते, किसी का रोम तक नहीं छूते | भेडों से उन्हें विशेष प्रेम है | इस जाति ने जो कष्ट सहें है, उनकी याद करके कभी-कभी भेड़िया सन्त की आँखों में आँसु आ जातें हैं | उनकी अपनी भेड़िया जाति ने जो अत्याचार आप पर किए हैं उनके कारण भेड़िया  सन्त का माथा लज्जा से जो झुका है, सो झुका ही हुआ है | परन्तु अब वे शेष जीवन आपकी सेवा में लगाकर तमाम पापों का प्रायश्चित करेंगे | आज सवेरे की ही बात है की एक मासूम भेड़ के बच्चे के पाँव में काँटा लग गया, तो भेड़िया सन्त ने उसे अपने दांतो से निकाला, दांतो से! पर जब वो बेचारा कष्ट से चल बसा, तो भेड़िया सन्त ने सम्मानपूर्वक उसकी अन्त्येष्टि-क्रिया की | उनके घर के पास जो हड्डीयों का ढेर लगा है उसके दान की घोषणा उन्होनें आज ही सवेरे की | अब तो वो सर्वस्व त्याग चुके हैं | अब आप उनसे भय मत करें | उन्हें अपना भाई समझें | बोलो,सब मिलकर सन्त भेड़िया जी की जय!"

भेड़िया जी अभी तक उसी तरह गर्दन में कंठी डाले विनय की मूर्ती बने बैठे थे | बीच में कभी-कभी सामने की ओर एकत्रित भेडों को देख लेते और टपकती हुई लार को गुटक जाते | 

बूढ़ा सियार फिर  बोला,"भाइयो और बहनों, मैं भेड़िया  सन्त से अपने मुखारविन्द से आपको प्रेम और दया का संदेश देने की प्रार्थना करता पर प्रेमवश उनका हृदय भर आया है, वे गदगद हो गए हैं और भावातिरेक से उनका कण्ठ अवरुद्ध हो गया है | वे बोल नही सकते | अब आप इन् तीनो रंगीन प्राणीयों को देखिए | आप इन्हें न पहचान पाए होंगे | पहचाने भी कैसे? ये इस लोक के जीव तो है नहीं | ये तो स्वर्ग के देवता हैं जो हम्हे
सदुपदेश देने के लिए पृथ्वी पर उतरे हैं | 

ये पीले विचारक है,कवि है, लेखक भी हैं | 
ये नीले नेता और स्वर्ग के पत्रकार है | और ये हरे वाले  धर्मगुरु हैं | 
अब कविराज आप को स्वर्ग  का संगीत सुनाएंगे. हाँ कवि जी..."

पीले सियार को 'हुआँ-हुआँ' के सिवा कुछ और तो आता नही था | 
'हुआँ-हुआँ' चिल्ला दिया | शेष सियार भी 'हुआँ-हुआँ'
बोल पड़े | बूढ़े सियार ने आँख के इशारे से शेष सियारों को मना किया
और चतुराई से बात को यों कह कर संभाला, "भई कवि जी तो कोरस 
में गीत गाते हैं | पर कुछ समझें आप लोग? कैसे समझ सकतें हैं? 
अरे, कवि की बात सबकी समझ में आ जाए तो वो कवि काहे का? 
उनकी कविता में से शाश्वत के स्वर फूट रहें हैं | वे कह रहे हैं कि 
जैसे स्वर्ग में परमात्मा वैसे ही पृथ्वी पर भेड़िया | हे भेड़िया जी, महान! आप सर्वत्र व्याप्त हैं, सर्वशक्तिमान हैं | प्रातः आपके मस्तक पर तिलक करती है, साँझ की उषा आपका मुख चूमती है, पवन आप पर पंखा करता है और रात्री को आप ही कि ज्योति लक्ष-लक्ष खण्ड होकर आकाश में तारे बन कर चमकती है | हे विराट! आपके चरणो में इस का तुच्छ प्राणी  का प्रणाम है |"

फिर नीले रंग के सियार ने कहा, "निर्बलों की रक्षा बलवान ही कर सकतें हैं | भेड़े  कोमल हैं, निर्बल हैं, अपनी रक्षा नही कर सकती | भेड़िये बलवान हैं, इसलिए उनके हाथों में अपना हित छोड निश्चिन्त हो जाओ,वह तुम्हारा भाई है | आप एक ही जाति के हो | तुम भेड़ और वह  भेड़िया | कितना कम अन्तर है! और बेचारा भेड़िया व्यर्थ ही बदनाम कर दिया गया है कि वह भेडों को खाता है | अरे खाते और हैं और हड्डीयाँ उनके द्वार पर फेंक जाते हैं | ये व्यर्थ ही बदनाम होते हैं | तुम तो पंचायत में बोल भी नही पाओगे | भेड़िये बलवान होतें हैं | यदि तुम पर कोई अन्याय होगा, तो डटकर लड़ेंगे | इसलिए अपने हित की रक्षा के लिए भेड़ियों को चुनकर पंचायत में भेजो | बोलो सन्त भेड़िया की जय!"

फिर हरे रंग कि धर्मगुरु ने उपदेश दिया,"जो यहाँ त्याग करेगा, वह उस लोक में पाएगा | जो यहाँ दुख भोगेगा, वह वहाँ सुख पाएगा | जो यहाँ राजा बनेगा वो वहाँ राजा बनेगा | जो यहाँ वोट देगा वो वहाँ वोट पाएगा | इसलिए सब मिलकर भेड़िया को वोट दो | वो दानी हैं, परोपकारी हैं, सन्त हैं | मैं उनको प्रणाम करता हूँ |" 

ये एक भेड़िये की कथा नही है; यह सब भेड़ियों की कथा है | सब जगह इसी प्रकार प्रचार हो गया और भेडों को विश्वास हो गया कि  भेड़िये से बढ़ कर उनका कोई हित-चिन्तक और हित-रक्षक नही है | 

और , जब पंचायत का चुनाव हुआ तो भेडों ने अपनी हित-रक्षा के लिए भेड़ियों को चुना | और,पंचायत में भेडों के हितों की रक्षा के लिए भेड़िये प्रतिनिधि बनकर गए |

और पंचायत में भेड़ियों ने भेडों की भलाई के लिए सबसे पहल कानून ये बनाया- 

हर भेड़िये को सवेरे नाश्ते के लिए भेड़ का एक मुलायम बच्चा दिया 
जाए, दोपहर के भोजन में एक पूरी भेड़ तथा शाम को स्वास्थ्य के 
ख्याल से कम खाना चाहिए, इसलिए आधी भेड़ दी जाए | 



Comments

  1. ultimate story...i hav studied it in my course too....

    ReplyDelete
  2. Was looking for it for long. Glad to find it. I had it in my 8th/9th std. book. Classic story indeed

    ReplyDelete
  3. I too read it long back, I guess in my 9th class. Indian democracy ka asal sach.

    ReplyDelete
  4. It was in our 9th standard . too close to reality .

    ReplyDelete
  5. I read this story in my school,in 8th standard i think.

    ReplyDelete
  6. its in my 9th std hindi book name "Parag"

    ReplyDelete
  7. This comment has been removed by the author.

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular Posts