panch light by Renu
this is a short story in hindi written by Phanishwar Nath 'Renu'. One of the most famous of his works, written in anchalik hindi. I tried to search it all over the net....found no where. It has now been removed from the hindi syllabus (where most of us read it for the first time), and i had to search for some old books to find this. I have typed this in hindi to maintain the original flavor, since most of the versions on net are english (sad). soon i will type another famous short story 'bhed aur bhediye'. till then enjoy this one :)
पिछले पंद्रह महीने से दंड-जुर्माने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में | गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं | हरेक जाति की अलग अलग 'सभाचट्टी ' है | सभी पंचायतों में दरी, जाजिम , सतरंजी और पेट्रोमेक्स हैं - पेट्रोमेक्स, जिसे गाँव वाले पंचलैट कहते हैं |
पंचलैट खरीदने के बाद पंचो ने मेले में ही तय किया - दस रुपये जो बच गए हैं, इससे पूजा सामग्री खरीद ली जाए - बिना नेम टेम के कल-कब्जे वाली चीज़ का पुन्याह नहीं करना चाहिए | अँगरेज़ बहादुर के राज में भी पुल बनाने के पहले बलि दी जाती थी |
मेले में सभी दिन-दहाड़े ही गाँव लौटे; सबसे आगे पंचायत का छडीदार पंचलैट का डिब्बा माथे पर लेकर और उसके पीछे सरदार, दीवान, और पंच वगैरह | गाँव के बाहर ही ब्रह्मण टोली के फुटंगी झा ने टोक दिया - कितने मे लालटेन खरीद हुआ महतो ?
.... देखते नहीं हैं, पंचलैट है! बामन टोली के लोग ऐसे ही बात करते हैं | अपने घर की ढिबरी को भी बिजली-बत्ती कहेंगे और दूसरों के पंचलैट को लालटेन |
टोले भर के लोग जमा हो गए | औरत-मर्द, बूढ़े-बच्चे सभी कामकाज छोड़कर दौड़ आये - चल रे चल ! अपना पंचलैट आया है, पंचलैट ! छड़ीदार अगनू महतो रह- रहकर लोगों को चेतावनी देने लगा - हाँ, दूर से, जरा दूर से ! छू-छा मत करो, ठेस न लगे |
सरदार ने अपनी स्त्री से कहा- सांझ को पूजा होगी; जल्द से नहा-धोकर चौका-पीढ़ा लगाओ |
टोले की कीर्तन-मंडली के मूलगैन ने अपने भगतिया पच्च्को को समझा कर कहा- देखो, आज पंचलैट की रौशनी मे कीर्तन होगा | बेताले लोगों से पहले ही कह देता हूँ , आज यदि आखर धरने में डेढ़-बेड़ हुआ, तो दूसरे दिन से एकदम बैकाट |
औरतों की मंडली मे गुलरी काकी गोसाईं का गीत गुनगुनाने लगी | छोटे-छोटे बच्चों ने उत्साह के मारे बेवजह शोरगुल मचाना शुरू किया |
सूरज डूबने के एक घंटा पहले ही टोले भर के लोग सरदार के दरवाजे पर आकर खड़े हो गए- पंचलैट, पंचलैट !
पंचलैट के सिवा और कोई गप नहीं, कोई दूसरी बात नहीं | सरदार ने गुड़गुड़ी पीते हुआ कहा- दुकानदार ने पहले सुनाया, पूरे पांच कौड़ी पांच रुपया | मैंने कहा की दुकानदार साहेब मत समझिये की हम एकदम देहाती हैं | बहुत बहुत पंचलैट देखा है | इसके बाद दुकानदार मेरा मूंह देखने लगा | बोला, लगता है आप जाती के सरदार हैं | ठीक है, जब आप सरदार होकर खुद पंचलैट खरीदने आये हैं तो जाइए, पूरे पांच कौड़ी में आपको दे रहे हैं |
दीवान जी ने कहा -- अलबत्ता चेहरा परखने वाला दूकानदार है | पंचलैट का बक्सा दूकान का नौकर देना नहीं चाहता था | मैंने कहा, देखिये दूकानदार साहेब, बिना बक्सा पंचलैट कैसे ले जायेंगे | दूकानदार ने नौकर को डांठते हुए कहा, क्यों रें ! दीवान जी की आँख के आगे 'धुरखेल' करता है ; दे दो बक्सा |
टोले के लोगो ने अपने सरदार और दीवान को श्रद्धा-भरी निगाहों से देखा | छड़ीदार ने औरतों की मंडली को सुनाया - रास्ते मे सन्न-सन्न बोलता था पंचलैट |
लेकिन....ऐन मौके पर 'लेकिन' लग गया ! रुदल साह बनिए की दूकान से तीन बोतल किरासन तेल आया और सवाल पैदा हुआ, पंचलैट को जलाएगा कौन ?
यह बात पहले किसी के दिमाग में नहीं आई थी | पंचलैट खरीदने के पहले किसी ने न सोचा | खरीदने के बाद भी नहीं | अब पूजा की सामग्री चौकी पर सजी हुई है, किर्तनिया लोग खोल-ढोल-करताल खोल कर बैठे हैं, और पंचलैट पड़ा हुआ है | गाँव वालो ने आज तक कोई ऐसी चीज़ नहीं खरीदी, जिसमे जलाने-बुझाने की झंझट हो | कहावत है न, भाई रे, गाय लूं ? तो दुहे कौन ? ....लो मजा ! अब इस कल-कब्जे वाली चीज़ को कौन बाले ?
यह बात नहीं की गाँव भर मे कोई पंचलैट जलाने वाला नहीं | हरेक पंचायत मे पंचलैट है, उसके जलाने वाले जानकार हैं | लेकिन सवाल है कि पहली बार नेम-टेम करके, शुभ-लाभ करके, दूसरी पंचायत के आदमी की मदद से पंचलैट जलेगा? इससे तो अच्छा है कि पंचलैट पड़ा रहे | ज़िन्दगी भर ताना कौन सहे ! बात-बात मे दूसरे टोले के लोग कूट करेंगे -- तुम लोगों का पंचलैट पहली बार दूसरे के हाथ .....! न, न ! पंचायत की इज्जत का सवाल है | दूसरे टोले के लोगो से मत कहिये |
चारों ओर उदासी छा गयी | अन्धेरा बढ़ने लगा | किसी ने अपने घर मे आज ढिबरी भी नहीं जलाई थी | .....आखिर पंचलैट के सामने ढिबरी कौन बालता है |
सब किये-कराये पर पानी फिर रहा था | सरदार, दीवान और छड़ीदार कि मुंह मे बोली नहीं | पंचों के चेहरे उतर गए थे | किसी ने दबी आवाज़ मे कहा -- कल-कब्जे वाली चीज़ का नखरा बहुत बड़ा होता है |
एक नौजवान ने आकर सूचना दी -- राजपूत टोली के लोग हसतें- हसतें पागल हो रहे हैं | कहते हैं, कान पकड़ कर पंचलैट के सामने पांच बार उठो-बैठो, तुरंत जलने लगेगा |
पंचों ने सुनकर मन-ही-मन कहा -- भगवान् ने हसने का मौका दिया है, हसेंगे नहीं ? एक बूढ़े ने लाकर खबर दी -- रूदल साह बनिया भारी बतंगड़ आदमी है | कह रहा है पंचलैट का पम्पू ज़रा होशियारी से देना |
गुलरी काकी की बेटी मुनरी के मुंह में बार-बार एक बात आकर मन में लौट जाती है | वह कैसे बोले ? वह जानती है कि गोधन पंचलैट बालना जानता है | लेकिन, गोधन का हुक्का-पानी पंचायत से बंद है | मुनरी कि माँ ने पंचायत से फरियाद की थी कि गोधन रोज उसकी बेटी को देखकर 'सलम-सलम' वाला सलीमा का गीत गाता है - हम तुमसे मोहब्बत करके सलम | पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था | दूसरे गाँव से आकर बसा है गोधन, और अब तक टोले के पंचों को पान-सुपारी खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया | परवाह ही नहीं करता | बस, पंचों को मौका मिला | दस रुपया जुर्माना | न देने से हुक्का-पानी बंद | ....आज तक गोधन पंचायत से बाहर है | उससे कैसे कहा जाए ! मुनरी उसका नाम कैसे ले ? और उधर जाती का पानी उतर रहा है |
मुनरी ने चालाकी से अपनी सहली कनेली के कान में बात दाल दी -- कनेली ! ...चिगो, चिध, -s -s , चीन....|
कनेली मुस्कराकर रहा गयी --गोधन...तो बंद है | मुनरी बोली --तू कह तो सरदार से |
'गोधन जानता है पंचलैट बालना |' कनेली बोली |
कौन, गोधन ? जानता है बालना ? लेकिन .... |
सरदार ने दीवान की ओर देखा और दीवान ने पंचों की ओर | पंचों ने एक मत होकर हुक्का-पानी बंद किया है | सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारने वाले गोधन से गाँव भर के लोग नाराज़ थे | सरदार ने कहा -- जाति की बंदिश क्या, जबकि जाति की इज्जत ही पानी में बही जा रही है ! क्यों जी दीवान ?
दीवान ने कहा -- ठीक है |
पंचों ने भी एक स्वर में कहा -- ठीक है | गोधन को खोल दिया जाय |
सरदार ने छड़ीदार को भेजा | छड़ीदार वापस आकर बोला -- गोधन आने को राज़ी नहीं हो रहा है | कहता है, पंचों की क्या परतीत है ? कोई कल-कब्ज़ा बिगड़ गया तो मुझे ही दंड जुर्माना भरना पड़ेगा |
छड़ीदार ने रोनी सूरत बना कर कहा -- किसी तरह से गोधन को राज़ी करवाइए, नहीं तो कल से गाँव मे मुंह दिखाना मुश्किल हो जाएगा |
गुलरी काकी बोली -- ज़रा मैं देखूं कहके |
गुलरी काकी उठ कर गोधन के झोपड़े की ओर गयी और गोधन को मना लाई | सभी के चेहरे पर नयी आशा की रोशनी चमकी | गोधन चुपचाप पंचलैट में तेल भरने लगा | सरदार की स्त्री ने पूजा सामग्री के पास चक्कर काटती हुई बिल्ली को भगाया | कीर्तन-मंडली के मूलगैन मुरछल के बालों को संवारने लगा | गोधन ने पूछा -- इस्पिरिट कहाँ है ? बिना इस्पिरिट के कैसे जलेगा ?
.... लो मजा ! अब यह दूसरा बखेड़ा खड़ा हुआ | सभी ने मन ही मन सरदार, दीवान और पंचों की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट किया -- बिना बूझे-समझे काम करते हैं यह लोग | उपस्थित जन-समूह में फिर मायूसी छा गई | लेकिन, गोधन बड़ा होशियार लड़का है | बिना इस्पिरिट के ही पंचलैट जलाएगा | ....थोडा गरी का तेल ला दो | मुनरी दौड़कर गई और एक मलसी गरी का तेल ले आई | गोधन पंचलैट में पम्प देने लगा |
पंचलैट की रेशमी थैली मे धीरे-धीरे रौशनी आने लगी | गोधन कभी मुंह से फूंकता, कभी पंचलैट की चाबी घुमाता | थोड़ी देर के बाद पंचलैट से सनसनाहट की आवाज़ निकालने लगी और रोशनी बढती गई | लोगों के दिल का मैल दूर हो गया | गोधन बड़ा काबिल लड़का है |
अंत में पंचलैट की रोशनी से सारी टोली जगमगा उठी, तो कीर्तनिया लोगों ने एक स्वर में, महावीर स्वामी की जय-ध्वनि के साथ कीर्तन शुरू कर दिया | पंचलैट की रोशनी में सभी के मुस्कराते हुए चेहरे स्पष्ट हो गए | गोधन ने सबका दिल जीत लिया | मुनरी ने हरकत-भरी निगाह से गोधन की ओर देखा | आँखें चार हुई और आँखों ही आँखों मे बातें हुई - कहा सुना माफ़ करना ! मेरा क्या कसूर ?
सरदार ने गोधन को बहुत प्यार से पास बुला कर कहा -- तुमने जाति की इज्जत रखी है | तुम्हारे सात खून माफ़ | खूब गाओ सलीमा का गाना |
गुलरी काकी बोली -- आज रात में मेरे घर में खाना गोधन |
गोधन ने एक बार फिर मुनरी की ओर देखा | मुनरी की पलके झुक गई |
कीर्तनिया लोगो ने एक कीर्तन समाप्त कर जयध्वनि की -- जय हो ! जय हो! ....पंचलैट के प्रकाश में पेड़-पौधों का पत्ता-पत्ता पुलकित हो रहा था |
पिछले पंद्रह महीने से दंड-जुर्माने के पैसे जमा करके महतो टोली के पंचों ने पेट्रोमेक्स खरीदा है इस बार, रामनवमी के मेले में | गाँव में सब मिलाकर आठ पंचायतें हैं | हरेक जाति की अलग अलग 'सभाचट्टी ' है | सभी पंचायतों में दरी, जाजिम , सतरंजी और पेट्रोमेक्स हैं - पेट्रोमेक्स, जिसे गाँव वाले पंचलैट कहते हैं |
पंचलैट खरीदने के बाद पंचो ने मेले में ही तय किया - दस रुपये जो बच गए हैं, इससे पूजा सामग्री खरीद ली जाए - बिना नेम टेम के कल-कब्जे वाली चीज़ का पुन्याह नहीं करना चाहिए | अँगरेज़ बहादुर के राज में भी पुल बनाने के पहले बलि दी जाती थी |
मेले में सभी दिन-दहाड़े ही गाँव लौटे; सबसे आगे पंचायत का छडीदार पंचलैट का डिब्बा माथे पर लेकर और उसके पीछे सरदार, दीवान, और पंच वगैरह | गाँव के बाहर ही ब्रह्मण टोली के फुटंगी झा ने टोक दिया - कितने मे लालटेन खरीद हुआ महतो ?
.... देखते नहीं हैं, पंचलैट है! बामन टोली के लोग ऐसे ही बात करते हैं | अपने घर की ढिबरी को भी बिजली-बत्ती कहेंगे और दूसरों के पंचलैट को लालटेन |
टोले भर के लोग जमा हो गए | औरत-मर्द, बूढ़े-बच्चे सभी कामकाज छोड़कर दौड़ आये - चल रे चल ! अपना पंचलैट आया है, पंचलैट ! छड़ीदार अगनू महतो रह- रहकर लोगों को चेतावनी देने लगा - हाँ, दूर से, जरा दूर से ! छू-छा मत करो, ठेस न लगे |
सरदार ने अपनी स्त्री से कहा- सांझ को पूजा होगी; जल्द से नहा-धोकर चौका-पीढ़ा लगाओ |
टोले की कीर्तन-मंडली के मूलगैन ने अपने भगतिया पच्च्को को समझा कर कहा- देखो, आज पंचलैट की रौशनी मे कीर्तन होगा | बेताले लोगों से पहले ही कह देता हूँ , आज यदि आखर धरने में डेढ़-बेड़ हुआ, तो दूसरे दिन से एकदम बैकाट |
औरतों की मंडली मे गुलरी काकी गोसाईं का गीत गुनगुनाने लगी | छोटे-छोटे बच्चों ने उत्साह के मारे बेवजह शोरगुल मचाना शुरू किया |
सूरज डूबने के एक घंटा पहले ही टोले भर के लोग सरदार के दरवाजे पर आकर खड़े हो गए- पंचलैट, पंचलैट !
पंचलैट के सिवा और कोई गप नहीं, कोई दूसरी बात नहीं | सरदार ने गुड़गुड़ी पीते हुआ कहा- दुकानदार ने पहले सुनाया, पूरे पांच कौड़ी पांच रुपया | मैंने कहा की दुकानदार साहेब मत समझिये की हम एकदम देहाती हैं | बहुत बहुत पंचलैट देखा है | इसके बाद दुकानदार मेरा मूंह देखने लगा | बोला, लगता है आप जाती के सरदार हैं | ठीक है, जब आप सरदार होकर खुद पंचलैट खरीदने आये हैं तो जाइए, पूरे पांच कौड़ी में आपको दे रहे हैं |
दीवान जी ने कहा -- अलबत्ता चेहरा परखने वाला दूकानदार है | पंचलैट का बक्सा दूकान का नौकर देना नहीं चाहता था | मैंने कहा, देखिये दूकानदार साहेब, बिना बक्सा पंचलैट कैसे ले जायेंगे | दूकानदार ने नौकर को डांठते हुए कहा, क्यों रें ! दीवान जी की आँख के आगे 'धुरखेल' करता है ; दे दो बक्सा |
टोले के लोगो ने अपने सरदार और दीवान को श्रद्धा-भरी निगाहों से देखा | छड़ीदार ने औरतों की मंडली को सुनाया - रास्ते मे सन्न-सन्न बोलता था पंचलैट |
लेकिन....ऐन मौके पर 'लेकिन' लग गया ! रुदल साह बनिए की दूकान से तीन बोतल किरासन तेल आया और सवाल पैदा हुआ, पंचलैट को जलाएगा कौन ?
यह बात पहले किसी के दिमाग में नहीं आई थी | पंचलैट खरीदने के पहले किसी ने न सोचा | खरीदने के बाद भी नहीं | अब पूजा की सामग्री चौकी पर सजी हुई है, किर्तनिया लोग खोल-ढोल-करताल खोल कर बैठे हैं, और पंचलैट पड़ा हुआ है | गाँव वालो ने आज तक कोई ऐसी चीज़ नहीं खरीदी, जिसमे जलाने-बुझाने की झंझट हो | कहावत है न, भाई रे, गाय लूं ? तो दुहे कौन ? ....लो मजा ! अब इस कल-कब्जे वाली चीज़ को कौन बाले ?
यह बात नहीं की गाँव भर मे कोई पंचलैट जलाने वाला नहीं | हरेक पंचायत मे पंचलैट है, उसके जलाने वाले जानकार हैं | लेकिन सवाल है कि पहली बार नेम-टेम करके, शुभ-लाभ करके, दूसरी पंचायत के आदमी की मदद से पंचलैट जलेगा? इससे तो अच्छा है कि पंचलैट पड़ा रहे | ज़िन्दगी भर ताना कौन सहे ! बात-बात मे दूसरे टोले के लोग कूट करेंगे -- तुम लोगों का पंचलैट पहली बार दूसरे के हाथ .....! न, न ! पंचायत की इज्जत का सवाल है | दूसरे टोले के लोगो से मत कहिये |
चारों ओर उदासी छा गयी | अन्धेरा बढ़ने लगा | किसी ने अपने घर मे आज ढिबरी भी नहीं जलाई थी | .....आखिर पंचलैट के सामने ढिबरी कौन बालता है |
सब किये-कराये पर पानी फिर रहा था | सरदार, दीवान और छड़ीदार कि मुंह मे बोली नहीं | पंचों के चेहरे उतर गए थे | किसी ने दबी आवाज़ मे कहा -- कल-कब्जे वाली चीज़ का नखरा बहुत बड़ा होता है |
एक नौजवान ने आकर सूचना दी -- राजपूत टोली के लोग हसतें- हसतें पागल हो रहे हैं | कहते हैं, कान पकड़ कर पंचलैट के सामने पांच बार उठो-बैठो, तुरंत जलने लगेगा |
पंचों ने सुनकर मन-ही-मन कहा -- भगवान् ने हसने का मौका दिया है, हसेंगे नहीं ? एक बूढ़े ने लाकर खबर दी -- रूदल साह बनिया भारी बतंगड़ आदमी है | कह रहा है पंचलैट का पम्पू ज़रा होशियारी से देना |
गुलरी काकी की बेटी मुनरी के मुंह में बार-बार एक बात आकर मन में लौट जाती है | वह कैसे बोले ? वह जानती है कि गोधन पंचलैट बालना जानता है | लेकिन, गोधन का हुक्का-पानी पंचायत से बंद है | मुनरी कि माँ ने पंचायत से फरियाद की थी कि गोधन रोज उसकी बेटी को देखकर 'सलम-सलम' वाला सलीमा का गीत गाता है - हम तुमसे मोहब्बत करके सलम | पंचों की निगाह पर गोधन बहुत दिन से चढ़ा हुआ था | दूसरे गाँव से आकर बसा है गोधन, और अब तक टोले के पंचों को पान-सुपारी खाने के लिए भी कुछ नहीं दिया | परवाह ही नहीं करता | बस, पंचों को मौका मिला | दस रुपया जुर्माना | न देने से हुक्का-पानी बंद | ....आज तक गोधन पंचायत से बाहर है | उससे कैसे कहा जाए ! मुनरी उसका नाम कैसे ले ? और उधर जाती का पानी उतर रहा है |
मुनरी ने चालाकी से अपनी सहली कनेली के कान में बात दाल दी -- कनेली ! ...चिगो, चिध, -s -s , चीन....|
कनेली मुस्कराकर रहा गयी --गोधन...तो बंद है | मुनरी बोली --तू कह तो सरदार से |
'गोधन जानता है पंचलैट बालना |' कनेली बोली |
कौन, गोधन ? जानता है बालना ? लेकिन .... |
सरदार ने दीवान की ओर देखा और दीवान ने पंचों की ओर | पंचों ने एक मत होकर हुक्का-पानी बंद किया है | सलीमा का गीत गाकर आँख का इशारा मारने वाले गोधन से गाँव भर के लोग नाराज़ थे | सरदार ने कहा -- जाति की बंदिश क्या, जबकि जाति की इज्जत ही पानी में बही जा रही है ! क्यों जी दीवान ?
दीवान ने कहा -- ठीक है |
पंचों ने भी एक स्वर में कहा -- ठीक है | गोधन को खोल दिया जाय |
सरदार ने छड़ीदार को भेजा | छड़ीदार वापस आकर बोला -- गोधन आने को राज़ी नहीं हो रहा है | कहता है, पंचों की क्या परतीत है ? कोई कल-कब्ज़ा बिगड़ गया तो मुझे ही दंड जुर्माना भरना पड़ेगा |
छड़ीदार ने रोनी सूरत बना कर कहा -- किसी तरह से गोधन को राज़ी करवाइए, नहीं तो कल से गाँव मे मुंह दिखाना मुश्किल हो जाएगा |
गुलरी काकी बोली -- ज़रा मैं देखूं कहके |
गुलरी काकी उठ कर गोधन के झोपड़े की ओर गयी और गोधन को मना लाई | सभी के चेहरे पर नयी आशा की रोशनी चमकी | गोधन चुपचाप पंचलैट में तेल भरने लगा | सरदार की स्त्री ने पूजा सामग्री के पास चक्कर काटती हुई बिल्ली को भगाया | कीर्तन-मंडली के मूलगैन मुरछल के बालों को संवारने लगा | गोधन ने पूछा -- इस्पिरिट कहाँ है ? बिना इस्पिरिट के कैसे जलेगा ?
.... लो मजा ! अब यह दूसरा बखेड़ा खड़ा हुआ | सभी ने मन ही मन सरदार, दीवान और पंचों की बुद्धि पर अविश्वास प्रकट किया -- बिना बूझे-समझे काम करते हैं यह लोग | उपस्थित जन-समूह में फिर मायूसी छा गई | लेकिन, गोधन बड़ा होशियार लड़का है | बिना इस्पिरिट के ही पंचलैट जलाएगा | ....थोडा गरी का तेल ला दो | मुनरी दौड़कर गई और एक मलसी गरी का तेल ले आई | गोधन पंचलैट में पम्प देने लगा |
पंचलैट की रेशमी थैली मे धीरे-धीरे रौशनी आने लगी | गोधन कभी मुंह से फूंकता, कभी पंचलैट की चाबी घुमाता | थोड़ी देर के बाद पंचलैट से सनसनाहट की आवाज़ निकालने लगी और रोशनी बढती गई | लोगों के दिल का मैल दूर हो गया | गोधन बड़ा काबिल लड़का है |
अंत में पंचलैट की रोशनी से सारी टोली जगमगा उठी, तो कीर्तनिया लोगों ने एक स्वर में, महावीर स्वामी की जय-ध्वनि के साथ कीर्तन शुरू कर दिया | पंचलैट की रोशनी में सभी के मुस्कराते हुए चेहरे स्पष्ट हो गए | गोधन ने सबका दिल जीत लिया | मुनरी ने हरकत-भरी निगाह से गोधन की ओर देखा | आँखें चार हुई और आँखों ही आँखों मे बातें हुई - कहा सुना माफ़ करना ! मेरा क्या कसूर ?
सरदार ने गोधन को बहुत प्यार से पास बुला कर कहा -- तुमने जाति की इज्जत रखी है | तुम्हारे सात खून माफ़ | खूब गाओ सलीमा का गाना |
गुलरी काकी बोली -- आज रात में मेरे घर में खाना गोधन |
गोधन ने एक बार फिर मुनरी की ओर देखा | मुनरी की पलके झुक गई |
कीर्तनिया लोगो ने एक कीर्तन समाप्त कर जयध्वनि की -- जय हो ! जय हो! ....पंचलैट के प्रकाश में पेड़-पौधों का पत्ता-पत्ता पुलकित हो रहा था |
Awesome! Made me nostalgic :) I had also read 'Adim Ratri ki Mahak' Desi language is something to be adored.
ReplyDeletebeautiful...reading it after maybe 15 years...and now the story has lot more to tell...
ReplyDeletehahahahaa.. :) i felt as i m still a 5th grade student! :)
ReplyDeleteThanks for typing it in Hindi. Read for the first time, liked it very much.
ReplyDeleteKudos for your effort as the hindi original is not found on net. It is a great story and it seems strange that somebody can think it to be worth a 5 grader as one of the comments above says. Aapko punah sadhuwad.
ReplyDeletethank you for for reviving this story again in my mind.the simplicity in the story is its strength!
ReplyDeleteAmazing....
ReplyDeleteu cant imagine how badly i wanted to read this again.....u made me remember my childhood.........thanx a ton......
ReplyDeleteThanks for sharing it in hindi. I wanted to read the story for so long.
ReplyDeleteज़बरदस्त है!
ReplyDeleteसाझा करने के लिए धन्यवाद..
Thanks a lot, I was also yearning to read it.
ReplyDeleteSimple story, but beautifully told. Only a great writer like Renu can do this.
ReplyDeleteGud
ReplyDeleterealy nostalgic
ReplyDeleteअति उत्तम। पता नहीं क्यों आँखों में आँसू आ गए। गोधन मुनरी समेत सभी गाँव वाले हमेशा खुश रहें।
ReplyDeleteवाह वाह..! रेणु की कहानियों ने मुझे हमेशा भावनाओं का तगड़ा डोज दिया है.. एक बार फिर गाँव जीवंत हो उठा नजरों के सामने.. ठेस का सिरचन.. मैला आँचल का वो डाक्टर जिसे उसकी माँ ने बचपन मे ही फेंक दिया था.. तीसरी कसम का वो गाड़ीवान.. रसपिरिया का वो बूढ़ा गायक बहुत पसंद आते हैं मुझे.. बहुत रूलाया है रेणु ने, हँसाया भी बहुत है.. अपनी भाषा अपनी संस्कृति पर गर्व करना उसे दुनिया में स्थापित करने की जिद दिखती है मुझे रेणु में.. उस महान रचनाकार को नमन..!!
ReplyDeleteकहानी तो रोचक है ही ऐसा लगता है जैसे मेरे बी गंग की कहानी है, बहुत सारे शब्द जो लुप्त होते जा रहे हैं उसे देखकर बचपन को याद करके यादस्ट वापस ला रहा हूं।
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